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Saturday, September 12, 2009

मंच व्यवस्थापक

नाट्य जगत मैं यह एक ऐसा शब्द है जिसका चलन व्यावसयिक थिएटर से लेकर शोकिया थिएटर तक बड़े जौर -शौर से से प्रचलित है वोह इस लिए की रिहर्सल से ले कर शो की तिथि तक इसी को निर्देशक अवावं संचालक के आदेशों का पालन करना होता है और प्राय देखा गया है की बेक स्टेज के कामों मैं सबसे ज़यादह हस्त:छेप इसी प्राणी का होता है। सबसे ज़यादह जिम्मेदारियां निभाने वाला यह पद tab तक को बड़ा सहारा देने वाला जब तक इसे निभाने वाला व्यक्ति थिएटर की दुनिया का होता है किंतु अगर इस पद की गरिमा को देखते हुवे यह पद किसी की,किसी को सम्मानित करने की गरज से किसी गणमान्य व्यक्ति को चला जाता है तो बेक स्टेज मैं काम करने वाले सभी रंगकर्मियों को भरी पद जाता है. मंच सज्जा करने वालों के डिजाईन धरे के धरे रह जाते हैं और काम कुछ का कुछ हो जाता है। जबकि मंच व्यवस्था को मंच पर व मंच परे के बीच की कड़ी हों चाहिए, वोह हमेशा रिहर्सल मैं सबसे पहले आने वाला व्यक्ति होता है ,पुरे समाया रिहर्सल मैं होता है, सभी कलाकारों की समस्याएं, अवम विशेषताएं जान जाता है , निर्देशक का खास होता है ,संचालक अथवा निर्माता (अगर कोई हो तो) लेखक अगर नया नाटक हो रहा है तो सभी से उसके विचारो का आदान प्रदान होता रहता है .और वोही बेक स्टेज करने वालों के लिए छोटी बड़ी बातो मैं एक खरा सहायक होता है.नाटक वास्तव मैं एक बहुत बड़ी कला है और इसमें टाइमिंग का bahut ज़बरदस्त हाथ होता है। ज़रा सोचिये संवाद है"पार्वती एक गिलास पानी तो लाना'' अब पार्वती को गिलास नही मिल रहा है वो अपने हाथों से गिलास पकड़ने का अभिनय करती हुई आती है तब तक अभिनेता मंच के चार चक्कर लगा चुका होत है खली हांथों को देख कर चोंक जाता है दर्शक तालियाँ बजा देतें हैं तो इसका क्या अर्थ हुवा?कुछ नाटक जो प्रयोगात्मक होते हैं जिनमें प्रारम्भ से लेकर अंत तक मिमे का प्रयोग होता है ,ऐसे नाटको मैं मंच से परे क्या करना होत है उनकी चर्चा हम कभी बाद मैं कर लेंगे अभी हम उस प्रकार के नाटकों की चर्चा कर रहे हैं जिसके आधार पर फिल्मों का जनम हुवा अगर यह विधा नहीं होती तो तम्मं टेक्नोलॉजी धरी की धरी रह जाती जंगलों पहाडों देव्वारों की फोटो निकलने मात्र रह जाती यह तकनिकी" और कुछ और भी होता तो इतना मनोरंजनात्मक नहीं होता,जितना की आज है.एक व्यक्ति जिस ने नाट्य निर्देशक के साथ मिलकर सभी दूसरी विधाओं के साथियों से मिलकर एक मंच की परी कल्पना की, उसे पैंतालिस या साठ दिन मैं सजाया संवारा शो वाले दिन कलाकार को गिलास नहीं मिला और वो बिना गिलास मंच पर आगे दर्शकों को पता चलना था चल गया और हूटिंग हो गयी. एक मंच वयास्थापक की वजह से.यह तो एक छोटी सी बात हैं पुरे समय वोह चिल्लाता रहा था बहूत अमीर परिवार दिखा रहें हैं गिलास पित्तल का होना चाहिए ताकि लिघ्ट्स मैं सोनें का दिखे ग्लास मिला नहीं था तो क्राफ्ट मन ने राजाओं महाराजों जैसा दिखने वाली एक इमेज इंटर नेट से निकली सब ने मिलकर उस पसंद किया फिर पप्पेर मास्सी द्वारा उसे बनाया गया ,सब गिलास की बड़ी तारीफ़ कर रहे थे कलाकार को उस गिलास और उस गिलास को लेकर मंच पैर जो अभिनय करना था पर बढ़ा अभिमान था क्लापिंग तो लेकर ही रहूंगी मगर स्टेज मेनेजर ने पचास लोगों को दिखानें के चक्कर मई उसे नियत स्थान की वजाय कहीं और रख दिय ,दुसरे तरह की क्लापिंग हो गयी. नाटक किसी एक के बस का खेल नहीं है यह एक टीम वर्क है अब आप बेक स्टेज करने जारहे हैं तो आपको सबको साथ लेकर चलना होगा वेशक आपके किए हुवे सभी कार्यों की सराहनाओं का श्री अभिनेता अथवा निर्देशक को जाएगा आपका कोई नाम लेवा भी नहीं होगा फिर भी आप के वगैर एक नाटक मंचित होना सम्भव नही है। इतना जानने के बाद भी आपको बेक स्टेज पसंद है? आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स नामक इस विषय को सीखना है समझना है तो आइएए मैं आपके लिए तय्यार हूँ किसी प्रेक्टिकल विषय पर पहुँचना इतना आस्सन नहीं है, ख़ास तौ पैर तब जब हमें शब्दों से और रेखाओं से काम लेना हो, अभी हाल ही मैं जयपुर मैं एन सी सी नेवी का कैम्प लगा , स्थिथि यह थी की नाव चलने का प्रशिक्षण देना था तालाब मैं इस साल पानी ही नहीं है, प्रशिक्षक ने स्टूडेंट्स को नाव के पास ला खड़ा कर दिया और हवा मैं चप्पू चला कर सिखाना शुरू कर दिया। क्या यह सम्भव है ? हवा मैं चप्पू चलानें और पानी मैं चप्पू चलनें मैं क्या अन्तर है बताना ज़रूरी है? तो साहिबान हम एक इसे विषय पर काम कर रहें हैं जहाँ भरम उत्पन्न करना होता है जो कुछ हो रहा है वो वास्तविक लगे इसके लिए सारे प्रयास करने होतें हैं , एक अभिनेत नकली नाव मैं बैठ कर हवा मैं चप्पू चलाकर अपने अभिनय द्वारा माथे पर पसीने को poonchne का माश पशियों पर भार दिखा कर भरम उत्पन्न कर सकता है मगर हकीकत मैं ? तो अगली मुलाकात नए शब्द के साथ होगी,बेक स्टेज के प्रयोगों को दर्शानेंके लिए मुझे समय की आवश्यकता है .कुछ डिजाईन, कुछ चित्र अपनी बात आप तक पहुंचाने के लिए अति आवश्यक हैं,और समझनें के लिए हमें थोड़ा बहुत थिएटर का ज्ञान होना आवश्यक है , यह बात मैं आप से नहीं कह रहा हूँ मैं जानता हूँ आप तो थिएटर के प्रकांड पंडित हैं,यह सब जानकारियां तो उनके काम की हैं जिन्होंने अभी थिएटर मैं क़दम रखा हैं.

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