नाट्य निर्देशक :जैसा की मेनें वादा किया था अगली मुलाकात मैं उन शब्दों का ज़िक्र करूँगा जिनसे मन्च परे काम करने वाले नाट्यकर्मी का पला पड़ता है। तो जनाब यह निर्देशक स्वयं भी सेट बनाता हुवा या disign बनता हुवा देखा जा सकता है और नहीं भी। हिन्दी नाटकों की यह एक पीडा हैं की निर्देशक को वे सभी काम करने पड़ते हैं जो नाटक के हित मैं होते हैं ,नाटक चयन से लेकर अभिनेताओं को नाटक के लिए इकठ्ठा करने, नाटक के लिए धन की व्यवस्था करने ,अगर बहुत ही ज़यादा शोकीन लोगों का ग्रुप है तो नाटक की बहबूदी के लिए चंदा जुटाने तक, रिहर्सल के लिए जगह तलाशने से लेकर उसकी साफ़ सफाई तक, उसकी सज्जा वयस्था कलाकारों के चाये पानी नास्ते आदि सारे काम ,सेट, ड्रेस, संगीत मण्डली की तलाश महिला कला कारों को लाने ले जाने की वयवस्था सभी कुछ एक रंगमंच सॉरी हिन्दी रंग मंच के निर्देशक को करने होते हैं और इसी मैं नाटक की भलाई शामिल होती है. मेनें यह बात हिन्दी रंग मंच के उन करणधारों के बारे मैं कही है जिनके कन्धों पर हिन्दी रंग मंच कापुरा पुरा भर रखा हुवा है,जिनकी वजह से हिन्दी नाटक यदा कदा लोंगों की चर्चा का विषय बन ता हैं, मेने यह विवेचना उन निर्देशकों के लिए की है जिन्होंने इसे जिंदा रखा हुवा है .एक बेक स्टेज कर्मी को इसका जानना बहुत ज़रूरी है कयोंकि इस प्रकार के निर्देशक के साथ काम करने के बाद टिकटें बेच कर गुज़ारा करना पड़ता हैं. बदनामी का बोझ भी उठाना पड़ता है कि किस के साथ काम कर रहे हो यार इसे कौन जानता है। अब आप उन के बारे मैं जान लीजिये जिनके साथ काम करने से न - दाम - शोहरत व् पुरुष्कार सभी कुछ मिलता है इनके साथ मंच सज्जा वाले रंग कर्मी को पुरी चाटुकारिता और विवेक के साथ काम करना होता है। यह क्या होते हैं आपको इस का पुरा ज्ञान होना चाहिए यह किसी मान्यता परपत नाट्य संस्थान से उपाधि प्राप्त होते हैं,इन्हें अपनी विचारों को रखने के लिए भरतमुनि, शेक्स्पीअर ,पारसी थिएटर ही नहीं ब्रेक्थ और कई महान विभूतियों के नामों का सहारा लेना पड़ता हैं,इनसे बात को अच्छी तरह से समझने के लिए आपको आपकी समझ को इनके ऊपर शब्दों से कम और काम से ज़यादा प्रभावित करना होता है यह निर्देशक पहेले वाले निर्देशक से ज़यादा उदार और वैवभ शाली होता है मगर तब ही जब आपको हाँ मै हाँ मिलानी आती हो नहीं तो आप अपने काम को अंजाम नहीं दे पायेंगे .इस प्रकार के निर्देशकों के सहायक ज़यादा होतें हैं और वे ही सारा कार्य भार सम्हालते हैं.एक बेक स्टेज एक्सपर्ट को कभी यह नहीं भूलना चाहिए कि उसका काम ही नाटक को एक रूप प्रदान करता है, और व्यावसायिक थिएटर पैर इन्ही का एक छात्र राज होता है इन्हीं के मध्यम से आपका प्रचार होता है और इन्ही कि क्रपा दृष्टि से आप कोई पुरुष्कार पा सकतें हैं.और ऐसे भी निर्देशक होते हैं जो दोनों प्रकार के हो सकतें हैं .वास्तव मैं एक निर्देशक के बारे मैं जो डिजाइनर नहीं जानता वो थिएटर नहीं कर सकता है उसे अपनी साड़ी योग्यताओं के वावजूद घर बैठना पड़ सकता है इस लिए मैं चाहता हूँ कि आप आर्ट एंड क्राफ्ट के बारें मैं जो कुछ भी मुझ से पाये वो निरर्थक न जाए आप का भविष्य बेहतर बनाये .आपने देखा होगा कि मैंने आपसे अभी तक जो बात भी कि है वो सिर्फ़ अपने और अपने अनुभवों के माध्यम से कि हैं और आगे भी यह सिलसिला चलता रहेगा। मैं आप पैर दूसरों के विचार कदापि नहीं थोपना chahunga, क्योंकि हम जिस विषय पर काम करने जा रहे हैं woh prayogatmak हैं.आप शायद जान गए होंगे कि नाट्य निर्देशक क्या होता है? एक naty निर्देशक वो होता है जो नाटक को एक mala मैं pirota है,नाटक vibhinn vidhaon का संगम है इस लिए natya निर्देशक को doordristi,sayamwaan awam mitybhashi तथा सर्व gunn samppan होना चाहिए.जिस मैं उपरोक्त गुन होते हैं wohi naty निर्देशक safal होता है।
आज के liye इतना ही अगली बार नए shad पर चर्चा karengen मेरा athak prayas रहेगा कि हम जल्दी से जल्दी आर्ट एंड craft के प्रयोग शुरू कर देन । aari hathoda, रंग brush और दुसरे zarori ozaro, रूप सज्जा, prakaash sanyojan आदि vishyon तक पहुँच कर एक नाटक कि taiyaari शुरू करें taki हम इन सब baato का एक pryog कर सकें.
Friday, September 11, 2009
नाट्य निर्देशक
Posted by Unknown at 11:32 AM
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