Sunday, September 27, 2009
Monday, September 21, 2009
Saturday, September 12, 2009
मंच व्यवस्थापक
नाट्य जगत मैं यह एक ऐसा शब्द है जिसका चलन व्यावसयिक थिएटर से लेकर शोकिया थिएटर तक बड़े जौर -शौर से से प्रचलित है वोह इस लिए की रिहर्सल से ले कर शो की तिथि तक इसी को निर्देशक अवावं संचालक के आदेशों का पालन करना होता है और प्राय देखा गया है की बेक स्टेज के कामों मैं सबसे ज़यादह हस्त:छेप इसी प्राणी का होता है। सबसे ज़यादह जिम्मेदारियां निभाने वाला यह पद tab तक को बड़ा सहारा देने वाला जब तक इसे निभाने वाला व्यक्ति थिएटर की दुनिया का होता है किंतु अगर इस पद की गरिमा को देखते हुवे यह पद किसी की,किसी को सम्मानित करने की गरज से किसी गणमान्य व्यक्ति को चला जाता है तो बेक स्टेज मैं काम करने वाले सभी रंगकर्मियों को भरी पद जाता है. मंच सज्जा करने वालों के डिजाईन धरे के धरे रह जाते हैं और काम कुछ का कुछ हो जाता है। जबकि मंच व्यवस्था को मंच पर व मंच परे के बीच की कड़ी हों चाहिए, वोह हमेशा रिहर्सल मैं सबसे पहले आने वाला व्यक्ति होता है ,पुरे समाया रिहर्सल मैं होता है, सभी कलाकारों की समस्याएं, अवम विशेषताएं जान जाता है , निर्देशक का खास होता है ,संचालक अथवा निर्माता (अगर कोई हो तो) लेखक अगर नया नाटक हो रहा है तो सभी से उसके विचारो का आदान प्रदान होता रहता है .और वोही बेक स्टेज करने वालों के लिए छोटी बड़ी बातो मैं एक खरा सहायक होता है.नाटक वास्तव मैं एक बहुत बड़ी कला है और इसमें टाइमिंग का bahut ज़बरदस्त हाथ होता है। ज़रा सोचिये संवाद है"पार्वती एक गिलास पानी तो लाना'' अब पार्वती को गिलास नही मिल रहा है वो अपने हाथों से गिलास पकड़ने का अभिनय करती हुई आती है तब तक अभिनेता मंच के चार चक्कर लगा चुका होत है खली हांथों को देख कर चोंक जाता है दर्शक तालियाँ बजा देतें हैं तो इसका क्या अर्थ हुवा?कुछ नाटक जो प्रयोगात्मक होते हैं जिनमें प्रारम्भ से लेकर अंत तक मिमे का प्रयोग होता है ,ऐसे नाटको मैं मंच से परे क्या करना होत है उनकी चर्चा हम कभी बाद मैं कर लेंगे अभी हम उस प्रकार के नाटकों की चर्चा कर रहे हैं जिसके आधार पर फिल्मों का जनम हुवा अगर यह विधा नहीं होती तो तम्मं टेक्नोलॉजी धरी की धरी रह जाती जंगलों पहाडों देव्वारों की फोटो निकलने मात्र रह जाती यह तकनिकी" और कुछ और भी होता तो इतना मनोरंजनात्मक नहीं होता,जितना की आज है.एक व्यक्ति जिस ने नाट्य निर्देशक के साथ मिलकर सभी दूसरी विधाओं के साथियों से मिलकर एक मंच की परी कल्पना की, उसे पैंतालिस या साठ दिन मैं सजाया संवारा शो वाले दिन कलाकार को गिलास नहीं मिला और वो बिना गिलास मंच पर आगे दर्शकों को पता चलना था चल गया और हूटिंग हो गयी. एक मंच वयास्थापक की वजह से.यह तो एक छोटी सी बात हैं पुरे समय वोह चिल्लाता रहा था बहूत अमीर परिवार दिखा रहें हैं गिलास पित्तल का होना चाहिए ताकि लिघ्ट्स मैं सोनें का दिखे ग्लास मिला नहीं था तो क्राफ्ट मन ने राजाओं महाराजों जैसा दिखने वाली एक इमेज इंटर नेट से निकली सब ने मिलकर उस पसंद किया फिर पप्पेर मास्सी द्वारा उसे बनाया गया ,सब गिलास की बड़ी तारीफ़ कर रहे थे कलाकार को उस गिलास और उस गिलास को लेकर मंच पैर जो अभिनय करना था पर बढ़ा अभिमान था क्लापिंग तो लेकर ही रहूंगी मगर स्टेज मेनेजर ने पचास लोगों को दिखानें के चक्कर मई उसे नियत स्थान की वजाय कहीं और रख दिय ,दुसरे तरह की क्लापिंग हो गयी. नाटक किसी एक के बस का खेल नहीं है यह एक टीम वर्क है अब आप बेक स्टेज करने जारहे हैं तो आपको सबको साथ लेकर चलना होगा वेशक आपके किए हुवे सभी कार्यों की सराहनाओं का श्री अभिनेता अथवा निर्देशक को जाएगा आपका कोई नाम लेवा भी नहीं होगा फिर भी आप के वगैर एक नाटक मंचित होना सम्भव नही है। इतना जानने के बाद भी आपको बेक स्टेज पसंद है? आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स नामक इस विषय को सीखना है समझना है तो आइएए मैं आपके लिए तय्यार हूँ किसी प्रेक्टिकल विषय पर पहुँचना इतना आस्सन नहीं है, ख़ास तौ पैर तब जब हमें शब्दों से और रेखाओं से काम लेना हो, अभी हाल ही मैं जयपुर मैं एन सी सी नेवी का कैम्प लगा , स्थिथि यह थी की नाव चलने का प्रशिक्षण देना था तालाब मैं इस साल पानी ही नहीं है, प्रशिक्षक ने स्टूडेंट्स को नाव के पास ला खड़ा कर दिया और हवा मैं चप्पू चला कर सिखाना शुरू कर दिया। क्या यह सम्भव है ? हवा मैं चप्पू चलानें और पानी मैं चप्पू चलनें मैं क्या अन्तर है बताना ज़रूरी है? तो साहिबान हम एक इसे विषय पर काम कर रहें हैं जहाँ भरम उत्पन्न करना होता है जो कुछ हो रहा है वो वास्तविक लगे इसके लिए सारे प्रयास करने होतें हैं , एक अभिनेत नकली नाव मैं बैठ कर हवा मैं चप्पू चलाकर अपने अभिनय द्वारा माथे पर पसीने को poonchne का माश पशियों पर भार दिखा कर भरम उत्पन्न कर सकता है मगर हकीकत मैं ? तो अगली मुलाकात नए शब्द के साथ होगी,बेक स्टेज के प्रयोगों को दर्शानेंके लिए मुझे समय की आवश्यकता है .कुछ डिजाईन, कुछ चित्र अपनी बात आप तक पहुंचाने के लिए अति आवश्यक हैं,और समझनें के लिए हमें थोड़ा बहुत थिएटर का ज्ञान होना आवश्यक है , यह बात मैं आप से नहीं कह रहा हूँ मैं जानता हूँ आप तो थिएटर के प्रकांड पंडित हैं,यह सब जानकारियां तो उनके काम की हैं जिन्होंने अभी थिएटर मैं क़दम रखा हैं.
Posted by Unknown at 1:04 AM 0 comments
Friday, September 11, 2009
Posted by Unknown at 2:59 PM 0 comments
नाट्य निर्देशक
नाट्य निर्देशक :जैसा की मेनें वादा किया था अगली मुलाकात मैं उन शब्दों का ज़िक्र करूँगा जिनसे मन्च परे काम करने वाले नाट्यकर्मी का पला पड़ता है। तो जनाब यह निर्देशक स्वयं भी सेट बनाता हुवा या disign बनता हुवा देखा जा सकता है और नहीं भी। हिन्दी नाटकों की यह एक पीडा हैं की निर्देशक को वे सभी काम करने पड़ते हैं जो नाटक के हित मैं होते हैं ,नाटक चयन से लेकर अभिनेताओं को नाटक के लिए इकठ्ठा करने, नाटक के लिए धन की व्यवस्था करने ,अगर बहुत ही ज़यादा शोकीन लोगों का ग्रुप है तो नाटक की बहबूदी के लिए चंदा जुटाने तक, रिहर्सल के लिए जगह तलाशने से लेकर उसकी साफ़ सफाई तक, उसकी सज्जा वयस्था कलाकारों के चाये पानी नास्ते आदि सारे काम ,सेट, ड्रेस, संगीत मण्डली की तलाश महिला कला कारों को लाने ले जाने की वयवस्था सभी कुछ एक रंगमंच सॉरी हिन्दी रंग मंच के निर्देशक को करने होते हैं और इसी मैं नाटक की भलाई शामिल होती है. मेनें यह बात हिन्दी रंग मंच के उन करणधारों के बारे मैं कही है जिनके कन्धों पर हिन्दी रंग मंच कापुरा पुरा भर रखा हुवा है,जिनकी वजह से हिन्दी नाटक यदा कदा लोंगों की चर्चा का विषय बन ता हैं, मेने यह विवेचना उन निर्देशकों के लिए की है जिन्होंने इसे जिंदा रखा हुवा है .एक बेक स्टेज कर्मी को इसका जानना बहुत ज़रूरी है कयोंकि इस प्रकार के निर्देशक के साथ काम करने के बाद टिकटें बेच कर गुज़ारा करना पड़ता हैं. बदनामी का बोझ भी उठाना पड़ता है कि किस के साथ काम कर रहे हो यार इसे कौन जानता है। अब आप उन के बारे मैं जान लीजिये जिनके साथ काम करने से न - दाम - शोहरत व् पुरुष्कार सभी कुछ मिलता है इनके साथ मंच सज्जा वाले रंग कर्मी को पुरी चाटुकारिता और विवेक के साथ काम करना होता है। यह क्या होते हैं आपको इस का पुरा ज्ञान होना चाहिए यह किसी मान्यता परपत नाट्य संस्थान से उपाधि प्राप्त होते हैं,इन्हें अपनी विचारों को रखने के लिए भरतमुनि, शेक्स्पीअर ,पारसी थिएटर ही नहीं ब्रेक्थ और कई महान विभूतियों के नामों का सहारा लेना पड़ता हैं,इनसे बात को अच्छी तरह से समझने के लिए आपको आपकी समझ को इनके ऊपर शब्दों से कम और काम से ज़यादा प्रभावित करना होता है यह निर्देशक पहेले वाले निर्देशक से ज़यादा उदार और वैवभ शाली होता है मगर तब ही जब आपको हाँ मै हाँ मिलानी आती हो नहीं तो आप अपने काम को अंजाम नहीं दे पायेंगे .इस प्रकार के निर्देशकों के सहायक ज़यादा होतें हैं और वे ही सारा कार्य भार सम्हालते हैं.एक बेक स्टेज एक्सपर्ट को कभी यह नहीं भूलना चाहिए कि उसका काम ही नाटक को एक रूप प्रदान करता है, और व्यावसायिक थिएटर पैर इन्ही का एक छात्र राज होता है इन्हीं के मध्यम से आपका प्रचार होता है और इन्ही कि क्रपा दृष्टि से आप कोई पुरुष्कार पा सकतें हैं.और ऐसे भी निर्देशक होते हैं जो दोनों प्रकार के हो सकतें हैं .वास्तव मैं एक निर्देशक के बारे मैं जो डिजाइनर नहीं जानता वो थिएटर नहीं कर सकता है उसे अपनी साड़ी योग्यताओं के वावजूद घर बैठना पड़ सकता है इस लिए मैं चाहता हूँ कि आप आर्ट एंड क्राफ्ट के बारें मैं जो कुछ भी मुझ से पाये वो निरर्थक न जाए आप का भविष्य बेहतर बनाये .आपने देखा होगा कि मैंने आपसे अभी तक जो बात भी कि है वो सिर्फ़ अपने और अपने अनुभवों के माध्यम से कि हैं और आगे भी यह सिलसिला चलता रहेगा। मैं आप पैर दूसरों के विचार कदापि नहीं थोपना chahunga, क्योंकि हम जिस विषय पर काम करने जा रहे हैं woh prayogatmak हैं.आप शायद जान गए होंगे कि नाट्य निर्देशक क्या होता है? एक naty निर्देशक वो होता है जो नाटक को एक mala मैं pirota है,नाटक vibhinn vidhaon का संगम है इस लिए natya निर्देशक को doordristi,sayamwaan awam mitybhashi तथा सर्व gunn samppan होना चाहिए.जिस मैं उपरोक्त गुन होते हैं wohi naty निर्देशक safal होता है।
आज के liye इतना ही अगली बार नए shad पर चर्चा karengen मेरा athak prayas रहेगा कि हम जल्दी से जल्दी आर्ट एंड craft के प्रयोग शुरू कर देन । aari hathoda, रंग brush और दुसरे zarori ozaro, रूप सज्जा, prakaash sanyojan आदि vishyon तक पहुँच कर एक नाटक कि taiyaari शुरू करें taki हम इन सब baato का एक pryog कर सकें.
Posted by Unknown at 11:32 AM 0 comments
Wednesday, September 9, 2009
अब शुरू करें काम की baat
एक अजीब दास्ताँ हैं, मेरी ज़िन्दगी मैं ऐसा कुछ नहीं हुवा जो की ओरों के साथ न हुवा हो ,फिर भी मुझे न जाने क्यों ऐसा लगता है ,मैं ने जो किया अपनी जिंदगी मैं वोह ओरो से अलग हटकर है। मैं हमेशा से चाहता रहा की कोई तो ऐसा हो जो मेरे साथ मिलकर इस बेक स्टेज के काम मैं मेरा हाथ बताये बहुतों ने चाहा भी मगर चूंकि यह एक ऐसा काम है जो बिना अभ्यास के सम्भव नहीं है इस लिए नहीं कर पाये, आज भी जब मैं देखता हूँ की थिएटर से लेकर सिनेमा तक ,शादी विवाहों के समारोहों से लेकर जनम दिवस के आयोजनों तक आर्ट्स अवं क्राफ्ट्स के अनुभवियों की ज़रूरत बेहिसाब तादाद मैं निकलती रहती हैं तो भी गिनें चुनें लोग ही इस काम मैं रूचि दिखा रहें हैं। हालाँकि मैं ने थिएटर की जब शुरुआत की थी मेरा मकसद सिर्फ़ और सिर्फ़ अभिनय करना ही था और यह बात सभी लोग जो मुझे जानते हैं वो यह भी जानते हैं की सिर्फ़ मेरा यह हूनर ही था जिस ने मुझे ज़यादा तादाद मैं अभिनय नहीं करने दिया। फिर भी मुझे लगता है की मैंने जो किया वोह औरों से हटकर किया और इसका सिला मुझे मिल रहा है और मिलता रहेगा। मैं हेर हाल मैं थिएटर कर रहे उन सभी लोगों के साथ हूँ जो इसे पागल पण की हद के साथ कर रहें हैं। और उन के साथ भी जिन्होनें इसे अभी अभी शुरू किया हैं। नए लोगों के साथ इस लिए की उन्हें सही जानकारी का होना बहुत ज़रूरी हैं, प्रतिभाएं आज के इस रेअल्टी शो के ज़मानें मैं कुंठित हो रहीं हैं .और जबकि अब तो इन्हें थिएटर के लोगों ने भी समर्थन डे दिया है । जी हाँ आप जानते हैं की कोई भी प्रतिभा किसीभी प्रतिभा से कम नहीं होती है फिर इतनी सारी प्रतिभाओं को उदास कर किसी एक को प्रमाणित कर के आप क्या कहना चाहते हैं ?मैं जिस शो की बात कर रहा हूँ उसे एक नहीं बल्कि दो दो थिएटर के महारथियों का समर्थन प्राप्त था, और वे ही निर्णायक थे किस प्रकार कलेजे पर पत्थर रख कर उन्होंने निर्णय लिया होगा यह तो वे ही जाने मगर अन्याय के भागीदार तो बनही गए.तो नए लोगों को सही मार्गदर्शन की हर हाल मैं ज़रूरत है.और मैंने तो अपना काम शुरू कर दिया है ज़रूरत है कुछ और साथियों की जो जल्द ही मिल जायेंगे .थिएटर की सबसे बड़ी समस्या तो यह है की लोग इसे सिनेमा की सीडी समझते हैं हालाँकि यह एक अच्छी बात है की थिएटर को जिसे कलतक समाज का आईना कहा जाता था आज सिनेमा की सीडी समझा जाता है.और यही एक बात परेशानी का सबब भी बनती है। एक कलि को थिएटर फूल बनता है और उसकी महक से पूरी दुनिया मह्कक उठती है पर वोह खुशबू वापस थिएटर तक नहीं पहूँचती.तो शुरुआत मैं ही कयुन ऐसे संस्कार दिए जाएँ की वे थिएटर के लिए हमेशा तत्पर रहें.मैंने अपना काम शुरू कर दिया है बेक स्टेज से सम्बंधित सभी जानकारियां एक एक कर के मैं आप तक पहूँचाता रहूँगा और सशरीर भी जब भी याद करोगे हाज़िर जाऊँगा.मैं थोड़ा सा एक अलग अंदाज़ वाला काम करने का इच्छुक हूँ.और आप सब से मिलकर बहूत खुश हूँ.आप सब को मेरी दुवायें फलो फूलो और खुश रहो.
Posted by Unknown at 7:45 AM 0 comments