अभी तो बात शुरू की है मैंने बात नुक्कड़ नाटक हत्यारे की हो और उस से जुड़े लोगों को भुला दिया जाए ऐसा ना मुमकिन है जनाब । हत्यारे हेर गली और नुक्कड़ पर खेला गया नाटक मैं दम था पुरी तरह से लोंगो की भावना से जुड़ा था यह नाटक इस नाटक के एक-एक दिन मैं कई कई शो हुवे देखने वलों का तान्तां लगा रहता था ना जाने कहाँ से इस नाटक को देखने लोग आते थे भीड़ थमने का नाम नही लेती थी .साबिर खान और धीरज कुलश्रेष्ठ इस नाटक को सजाने सँवारने और लोंगो को इस नाटक से जोड़ने वाले दो नाम हैं .इस नाटक को नाटक बनाने मैं इन्होंने कोई कोर कसार नही छोड़ी थी । और चूंकि पुरे शहर के लेखक पत्रकार इस नाटक से जुड़े हुवे थे तौ इसको प्रचार इतना मिला जितना कभी नाटकों के इतिहास मैं किसी नाटक को नहीं मिला इसके हजारों शो हो गए दंगा कब ख़तम हो गया किसी को पता भी नहीं चला । शायद जब लोंगो ने कहा होगा की भैया अब तो दंगे ख़तम हो गए अब तो इसका पीछा छोड़ो शायद तब इसके शो बंद हुवे। मगर इस नाटक को मैं कभी नहीं भुला सकता । जब भी मौका मिलता है इसके एक दो शो ज़रूर कर देता हो फिर मैं दिल्ली मैं होऊं या बाम्बे मैं। अभी हाल ही मैं कुछ महीने पहेले देहरादून के एक स्कूल मैं वर्क शॉप की थी वहां भी यही नाटक करके पुराणी यादें ताज़ा करली थीं .हलाँकि इस नाटक पैर सफ़दर हाश्मी से ज़यादा हक साबिर खान साब का हैं पैर यह हमारा भी तो हैं.
Thursday, August 6, 2009
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narayan narayan
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