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Thursday, August 6, 2009

एक नहीं भुलाया जा सकने वाला natak

बात मेरे लिए ज़यादा पुरानी नहीं हैं । यह उस समय कि बात है जब गुजरात मैं हालात काफी बिगड़ चुके थे और हमारे यहाँ जयपुर मैं लोगों को चिंता सता रही थी कि यहाँ , क्या होंगा ? एसे हाथ पर हाथ रख कर तो नहीं बैठा जा सकता । तौ स्साब वहां लोगों की जानें जा रहीं थीं उनके घर जल रहे थे । और हम सहानभूति के सिवा और कर भी क्या सकते थे ? यूं गुजरात मैं दंगेkai बार हुंवे हैं घर ग़रीबों के जलें हैं दंगाइयों का कुछ नहीं बिगडा हैं .मैं भी दंगे और दंगाइयों के बारे मैं बात karana पसंद नहीं करता , मगर मैं जिस यादगार नाटक की बात यहाँ करना चाहता हूँ, इसकी याद किए बिना हो नही सकती थी कयोंकि इसका दारोमदार इसी पृष्ठ भूमि पर आधारित था। बात यह थी की जिस तरह का सहयोग एक रंग कर्मी को करना चाहिए जयपुर के रंग कर्मी ठीक उसी तरहं से सोच रहे थे । लो यह क्या हुवा डर और दहशत के मारे जयपुर वासी लड़ पड़े आपस मैं ऐसा जयपुर के इतिहास मैं पहली बार हुवा था .बाद मैं तो सभी को अहसास हो गया था की ग़लती होगई है .लकिन उस समय सभी रंग कर्मी एक सुर हुवे और सफदर हाश्मी के नाटक हत्यारे का जैपुरी कारन किया गया और राम निवास गार्डन के मुख्या दरवाज़े पर खेला गया । आपको हो सकता हो कि इसमे ऐसा क्या हैं कि इस कि चर्चा यहाँ की जाए साहब यही एक मात्र वोह नाटक हैं जिस ने सारे जैपुर के रंग कर्मियों, बुध्धि जीवियों,चितेर्कारों,पत्रकारों, संगीतकारों,कवियों,रचनाकारों, और विधाओं से जुडे सभी छोटे और बड़ों , दोस्त और दुश्मनों को एक कर दिया और उस नुक्कड़ पर इन सब की प्रस्तुति हत्यारे ने एक इतिहास रच दिया.बाग़ के उस कौने का नाम ही सफ़दर हाश्मी नुक्कड़ पड़ गया । जयपुर शहर की कोई ऐसी गली ऐसा नुक्कड़ बाकि नही बचा जिस पर यह नाटक नहीं खेला गया हों.

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