अभी तो बात शुरू की है मैंने बात नुक्कड़ नाटक हत्यारे की हो और उस से जुड़े लोगों को भुला दिया जाए ऐसा ना मुमकिन है जनाब । हत्यारे हेर गली और नुक्कड़ पर खेला गया नाटक मैं दम था पुरी तरह से लोंगो की भावना से जुड़ा था यह नाटक इस नाटक के एक-एक दिन मैं कई कई शो हुवे देखने वलों का तान्तां लगा रहता था ना जाने कहाँ से इस नाटक को देखने लोग आते थे भीड़ थमने का नाम नही लेती थी .साबिर खान और धीरज कुलश्रेष्ठ इस नाटक को सजाने सँवारने और लोंगो को इस नाटक से जोड़ने वाले दो नाम हैं .इस नाटक को नाटक बनाने मैं इन्होंने कोई कोर कसार नही छोड़ी थी । और चूंकि पुरे शहर के लेखक पत्रकार इस नाटक से जुड़े हुवे थे तौ इसको प्रचार इतना मिला जितना कभी नाटकों के इतिहास मैं किसी नाटक को नहीं मिला इसके हजारों शो हो गए दंगा कब ख़तम हो गया किसी को पता भी नहीं चला । शायद जब लोंगो ने कहा होगा की भैया अब तो दंगे ख़तम हो गए अब तो इसका पीछा छोड़ो शायद तब इसके शो बंद हुवे। मगर इस नाटक को मैं कभी नहीं भुला सकता । जब भी मौका मिलता है इसके एक दो शो ज़रूर कर देता हो फिर मैं दिल्ली मैं होऊं या बाम्बे मैं। अभी हाल ही मैं कुछ महीने पहेले देहरादून के एक स्कूल मैं वर्क शॉप की थी वहां भी यही नाटक करके पुराणी यादें ताज़ा करली थीं .हलाँकि इस नाटक पैर सफ़दर हाश्मी से ज़यादा हक साबिर खान साब का हैं पैर यह हमारा भी तो हैं.
Thursday, August 6, 2009
एक नहीं भुलाया जा सकने वाला natak
बात मेरे लिए ज़यादा पुरानी नहीं हैं । यह उस समय कि बात है जब गुजरात मैं हालात काफी बिगड़ चुके थे और हमारे यहाँ जयपुर मैं लोगों को चिंता सता रही थी कि यहाँ , क्या होंगा ? एसे हाथ पर हाथ रख कर तो नहीं बैठा जा सकता । तौ स्साब वहां लोगों की जानें जा रहीं थीं उनके घर जल रहे थे । और हम सहानभूति के सिवा और कर भी क्या सकते थे ? यूं गुजरात मैं दंगेkai बार हुंवे हैं घर ग़रीबों के जलें हैं दंगाइयों का कुछ नहीं बिगडा हैं .मैं भी दंगे और दंगाइयों के बारे मैं बात karana पसंद नहीं करता , मगर मैं जिस यादगार नाटक की बात यहाँ करना चाहता हूँ, इसकी याद किए बिना हो नही सकती थी कयोंकि इसका दारोमदार इसी पृष्ठ भूमि पर आधारित था। बात यह थी की जिस तरह का सहयोग एक रंग कर्मी को करना चाहिए जयपुर के रंग कर्मी ठीक उसी तरहं से सोच रहे थे । लो यह क्या हुवा डर और दहशत के मारे जयपुर वासी लड़ पड़े आपस मैं ऐसा जयपुर के इतिहास मैं पहली बार हुवा था .बाद मैं तो सभी को अहसास हो गया था की ग़लती होगई है .लकिन उस समय सभी रंग कर्मी एक सुर हुवे और सफदर हाश्मी के नाटक हत्यारे का जैपुरी कारन किया गया और राम निवास गार्डन के मुख्या दरवाज़े पर खेला गया । आपको हो सकता हो कि इसमे ऐसा क्या हैं कि इस कि चर्चा यहाँ की जाए साहब यही एक मात्र वोह नाटक हैं जिस ने सारे जैपुर के रंग कर्मियों, बुध्धि जीवियों,चितेर्कारों,पत्रकारों, संगीतकारों,कवियों,रचनाकारों, और विधाओं से जुडे सभी छोटे और बड़ों , दोस्त और दुश्मनों को एक कर दिया और उस नुक्कड़ पर इन सब की प्रस्तुति हत्यारे ने एक इतिहास रच दिया.बाग़ के उस कौने का नाम ही सफ़दर हाश्मी नुक्कड़ पड़ गया । जयपुर शहर की कोई ऐसी गली ऐसा नुक्कड़ बाकि नही बचा जिस पर यह नाटक नहीं खेला गया हों.
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